मोदी सरकार ने हाल ही में “सहकार टैक्सी” नामक एक नई सहकारी टैक्सी सेवा शुरू करने की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य भारत में परिवहन क्षेत्र को और अधिक समावेशी और लाभदायक बनाना है। इस योजना के तहत सरकार एक ऐसा डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करेगी, जो ड्राइवरों को बिना किसी मध्यस्थ के उनकी पूरी कमाई दिलाने में मदद करेगा। वर्तमान में, ओला और उबर जैसी निजी कंपनियाँ हर सवारी पर ड्राइवरों से 20-30% तक का कमीशन लेती हैं, जिससे उनकी आय प्रभावित होती है।
सहकार टैक्सी सेवा कैसे काम करेगी?
सहकार टैक्सी सेवा में बाइक टैक्सी, ऑटो-रिक्शा और चार पहिया वाहन शामिल होंगे, जिससे सभी प्रकार के ड्राइवरों को इसका लाभ मिल सकेगा। सरकार का दावा है कि यह सेवा पूरी तरह से डिजिटल होगी और यात्रियों को एक पारदर्शी, सस्ती और विश्वसनीय परिवहन विकल्प प्रदान करेगी।
इस सेवा के तहत सरकार एक मोबाइल ऐप विकसित कर रही है, जो ओला और उबर की तरह काम करेगा लेकिन बिना किसी निजी कंपनी के हस्तक्षेप के। इस योजना के तहत ड्राइवरों को सहकारी बीमा योजनाओं का लाभ भी मिलेगा, जिससे उन्हें वित्तीय सुरक्षा प्राप्त होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें ड्राइवरों से कोई कमीशन नहीं लिया जाएगा, जिससे उनकी आमदनी में वृद्धि होगी।
ओला और उबर को मिलेगी चुनौती?
ओला और उबर जैसी कंपनियों ने भारत में टैक्सी सेवाओं का बड़ा बाजार बना लिया है, लेकिन इनके मॉडल को लेकर लगातार आलोचना होती रही है। ड्राइवरों की शिकायत रही है कि ऊंचे कमीशन और अनियमित किराया निर्धारण के कारण उनकी आमदनी अस्थिर रहती है। हाल ही में इन कंपनियों पर किराया निर्धारण में भेदभाव करने के आरोप लगे थे, जिससे ग्राहकों को भी नुकसान उठाना पड़ता है।
सरकार की सहकार टैक्सी नीति इन समस्याओं को हल करने का प्रयास कर रही है। यदि यह सेवा सफल होती है, तो यह दुनिया में अपनी तरह की पहली सरकारी सहकारी टैक्सी सेवा होगी, जो निजी कंपनियों के वर्चस्व को चुनौती दे सकती है।
सहकार टैक्सी के सामने चुनौतियाँ
हालांकि, इस योजना के समक्ष कई चुनौतियाँ भी हैं।
1. मजबूत डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करना
सरकार को एक ऐसा ऐप और टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना होगा, जो ओला और उबर की तकनीक से मुकाबला कर सके। यदि ऐप धीमा या उपयोग में कठिन हुआ, तो ग्राहक इसे अपनाने में हिचकिचाएँगे।
2. ड्राइवरों को आकर्षित करना
ओला और उबर के पास पहले से ही बड़े पैमाने पर ड्राइवर नेटवर्क है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि सहकार टैक्सी से ड्राइवरों की आमदनी बढ़े, ताकि वे इसे अपनाने के लिए प्रेरित हों।
3. ग्राहकों का भरोसा जीतना
सहकार टैक्सी को सस्ती, सुविधाजनक और विश्वसनीय बनाना होगा, ताकि ग्राहक ओला और उबर की बजाय इसे पसंद करें। यदि सेवा में देरी, वाहन की अनुपलब्धता या अन्य समस्याएँ आईं, तो ग्राहक इसे नहीं अपनाएँगे।
क्या पहले भी ऐसे प्रयास हुए हैं?
भारत में इससे पहले भी कई बार ओला और उबर को चुनौती देने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन वे अधिक सफल नहीं हो पाए।
2017 में दिल्ली के टैक्सी ड्राइवरों ने “सेवा कैब” नामक पहल शुरू की थी, लेकिन वह ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो सकी।
पश्चिम बंगाल और केरल की सरकारों ने भी अपनी टैक्सी सेवाएँ शुरू की थीं, लेकिन वे ज्यादा प्रतिस्पर्धी नहीं बन पाईं।
कर्नाटक में “नम्मा यात्री” नामक एक स्थानीय ऐप आधारित सेवा शुरू की गई, जिसने ड्राइवरों को सीधे ग्राहकों से जोड़ने की कोशिश की।
हालांकि, सहकार टैक्सी योजना अपने बड़े पैमाने और सरकारी समर्थन की वजह से इनसे अलग हो सकती है।
सहकार टैक्सी की सफलता किन कारकों पर निर्भर करेगी?
सहकार टैक्सी की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार इसे कितनी कुशलता से लागू करती है। यदि यह योजना सही तरीके से क्रियान्वित होती है, तो यह भारत के टैक्सी बाजार में एक नया मॉडल स्थापित कर सकती है और ओला व उबर जैसी कंपनियों के एकाधिकार को समाप्त करने में सहायक हो सकती है।
इसके अलावा, यह गिग इकॉनमी में काम करने वाले ड्राइवरों के लिए एक स्थायी और लाभदायक विकल्प बन सकती है। हालांकि, यदि यह योजना ठीक से लागू नहीं होती या सरकारी प्रबंधन में कोई कमी रहती है, तो यह भी अन्य सरकारी योजनाओं की तरह केवल एक प्रयोग बनकर रह सकती है।
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