Mysterious tree, क्या ये भूख को करेगा गायब?
आपने दुनिया में कई सारे अजीबोगरीब पेड़ पौधे देखे होंगे, जिनमें से ऐसे कई पेड़ पौधे हैं, जिन्हें हम रोज देखते हैं, लेकिन उसके अंदर जो मैजिक है, उसे नहीं जानते।
चलिए, आज ऐसे ही एक रहस्यमयी पेड़ के बारे में बात करेंगे, जिसे कि बहुत लोग जानते हैं, पर वह हमारे किस-किस काम में आता है, वह शायद बहुत ही कम लोग जानते हैं।
आज हम मॉडर्न हो गए हैं, हमारे शरीर में कोई भी समस्या होने से पहले हम मेडिसिन खाकर उस समस्या को निपटा लेते हैं, लेकिन एक बार सोचिए, आज से कई साल पहले, जब ना तो डॉक्टर थे और ना ही मेडिसिंस, तब भी हमारे पूर्वज चुटकियों में अपना शरीर का सारा समस्या समाधान कर लेते थे। चाहे भूख बढ़ाना हो या भूख घटाना, शरीर से संबंधित हर समस्या का समाधान उनके पास होता था।
अंजन पेड़, क्या है ये पेड़?
हमारे भारत में अंजनी(मेमेसिलोन अम्बेलैटम) नाम का एक पेड़ है, जिसे विभिन्न भाषाओं में विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि इंग्लिश में ‘आयरन वुड’, ओड़िया में ‘निराश वृक्ष’ और ऐसे और भी कई सारे इसके नाम हैं। यह एक मध्यम आकार का वृक्ष होता है, जिसकी ऊंचाई आमतौर पर 6 से 10 मीटर तक होती है।इसकी पत्तियां चमकदार, गहरी, हरित, मोटी और अंडाकार आकार की होती हैं। इस पेड़ के फूल छोटे, सुंदर और नीले या बैंगनी रंग के होते हैं। फूलों के झड़ने के बाद, इस पेड़ में छोटे, गोल, बैंगनी-नीले रंग के फल उगते हैं, जिन्हें लोग खाते भी हैं।
क्यों इस पत्ते को खाने से भूख गायब हो जाती है?
इसके पत्तों में tannins, alkaloids, flavonoids और fiber जैसे तत्व मौजूद होने के कारण, यह digestive system को नियंत्रित करता है और hunger को नियंत्रित कर सकता है, appetite को कम करने में सहायक होता है। इसके पत्ते खाने से stomach full महसूस होता है और hunger कम लगती है।
यह माना जाता है कि ऋषि या संन्यासि लंबे समय तक इसके पत्ते खाते थे, जिससे उनकी भूख नियंत्रित रहती थी। पत्तियों को चबाने या काढ़ा बनाने में उपयोग किया जा सकता है, खासकर उपवास या तपस्या के दौरान। पत्तियों को चबाने पर, वे पहले मीठी लगेंगी, फिर थोड़ी खट्टी होंगी। ऐसा पत्तियों में starch की अच्छी मात्रा की वजह से होता है। इसकी पत्तियों में diarrhea रोकने के भी गुण होते हैं।
शिव जी के साथ संबंध
आपने आज तक देखा होगा कि शिव जी के पास बेल पत्ते चढ़ाए जाते हैं, लेकिन आपको शायद ही पता होगा कि तिरुवन्नामलाई में पहाड़ी की चोटी पर रहने वाले एक संत द्वारा इन पत्तियों को प्रसाद (तुलसी की तरह) के रूप में भी चढ़ाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अंजन वृक्ष के पत्तों का भगवान शिव और अरुणाचलेश्वर से गहरा संबंध है।
पुराणों में वर्णित
मत्स्य पुराण में वर्णित है कि जब महाप्रलय आई थी, तब राजा मनु को भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार के रूप में प्रकट होकर, एक विशाल नाव बनाने और उसमें सप्तर्षियों (सात ऋषियों), जीव-जंतुओं, औषधियों और अन्न के बीजों को रखने के लिए कहा था। और इन सब को लेकर, वे सप्तगुफा के पास ठहरे थे। और इसी दौरान, वे कई दिनों तक बिना भोजन, तपस्या कर रहे थे, और तभी, वे इस पेड़ के पत्तों को खाते थे, जिससे उन्हें भूख नहीं लगती थी।
अंजन पेड़ की छाल का उपयोग
इसकी की छाल से एक पीले से गहरे, भूरे या गेरुए रंग का अर्क प्राप्त होता है। यह प्राकृतिक रंग कपड़े और चटाइयों को रंगने के लिए उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग विशेष रूप से बौद्ध भिक्षुओं के गेरुआ वस्त्रों को रंगने में किया जाता है। पुराने समय में प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग किया जाता था, और अंजन वृक्ष की छाल इसके लिए उपयुक्त थी। ईख या अन्य घास से बनी चटाइयों को भी इसकी की छाल से रंगा जाता था। यह रंग न केवल स्थायित्व देता है, बल्कि चटाई को कीटों से भी बचाता है।
ऐतिहासिक रूप से अंजन पेड़ की लकड़ी का उपयोग
अंजन की लकड़ी बहुत घनी और कठोर होती है। यह जलने पर उच्च तापमान और स्थिर अग्नि प्रदान करती है, जो स्टील गलाने के लिए आवश्यक होती थी। अंजन की लकड़ी से प्राप्त चारकोल में कम राख और उच्च कार्बन सामग्री होती है, जो वुट्ज़ स्टील की विशेष गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद करता था। वुट्ज़ स्टील, जो कि एक प्राचीन भारतीय उच्च-गुणवत्ता का इस्पात था, जिसका उपयोग दमिश्क तलवारें बनाने में किया जाता था, दक्षिण भारत (विशेष रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश) में बहुत पुराना था।
अंजन पेड़ के फूलों का उपयोग
दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों में, अंजन के फूलों का उपयोग भगवान शिव और विष्णु की पूजा में किया जाता है। कहते हैं कि इसके फूल को पर्स में रखने से धन की कभी कमी नहीं होती है। इनसे बनी चाय या काढ़ा, सूजन कम करने, बुखार ठीक करने, और त्वचा रोगों के उपचार में सहायक होता है।
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