Gold बना डाला लैब के अंदर? क्या हम भी बना सकते हैं? प्राचीन भारत में भी Gold बनाया जाता था। 29 picograms सोना।

gold

कभी सोचा है कि वो सपना जो सदियों से इंसानों ने देखा, शीशे को gold में बदलने का, वो सच हो सकता है? 1700 के दशक में पोलैंड के राजा ने एक scientist को यही करने के लिए बंद कर दिया था। लेकिन वो नहीं कर पाया। अब करीब 300 साल बाद European scientists ने एक ऐसा experiment किया है जिसने science की दुनिया में हलचल मचा दी है। चलिए जानते हैं इस fascinating experiment के बारे में।

Gold बनाने का Experiment की शुरुआत कहां से हुई?

ये experiment किया गया था CERN (European Organization for Nuclear Research) में, जो कि दुनिया की सबसे बड़ी scientific research organization है। इस प्रयोग के लिए scientists ने LHC (Large Hadron Collider) का इस्तेमाल किया, जो कि एक बहुत ही powerful particle accelerator है।

कैसे हुआ actual collision?

Scientists ने lead nuclei को LHC के अंदर 99.9993% light speed से घूमाया। जब ये nuclei एक-दूसरे के पास से गुज़रे, तो उनकी electromagnetic field ने photons generate किए। इन photons ने lead atom की structure को disturb किया और proton-neutron बाहर निकल गए। इस reaction के बाद बना gold nucleus!

कितना बना Gold?

अब बात करें result की- तो इस पूरे process से बना सिर्फ 29 picograms gold।

मतलब?
1 gram के trillionth हिस्से जितना- इतना कम कि वो एक सेकंड में ही टूट गया और खत्म हो गया।

लेकिन यहाँ quantity नहीं, बल्कि scientific achievement ज़्यादा मायने रखती है।

कैसे पता चला कि बना भी है Gold?

CERN की ALICE team ने एक special device यूज़ किया- Zero Degree Calorimeter Detector (ZDC)। इसके ज़रिए उन्होंने उन particles को count किया जो collision के बाद निकले- जैसे protons और neutrons- और इसी से पता चला कि gold nucleus बना था।

क्या सिर्फ Gold बना?

नहीं, इस reaction से कुछ और elements भी बने जैसे:

Thallium (81 protons)

Mercury (80 protons)

ये दोनों elements gold से ज़्यादा मात्रा में बने। लेकिन scientific world के लिए सबसे exciting चीज़ थी gold का बनना!

क्या अब lab में सोना बनाना possible है?

Short answer- नहीं।

क्योंकि इस process में energy और technology का खर्चा इतना ज़्यादा है कि 1 gram gold बनाने में अरबों रुपए लग सकते हैं। और जो gold बनता भी है, वो भी instantly destroy हो जाता है।

फिर ऐसा complex experiment करने का क्या फायदा?

इससे scientists को बहुत कुछ सीखने को मिला:

Atoms के अंदर क्या होता है, इसका deeper understanding

Nuclear transmutation को practically observe किया गया

LHC और future accelerators को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है, इसकी जानकारी मिली

LHC क्या है?

Large Hadron Collider (LHC) एक बड़ी underground machine है, जिसकी मदद से particles को high-speed पर टकराया जाता है। इसका मकसद है Dark matter को समझना।

Universe की शुरुआत कैसे हुई, इसका पता लगाना।

Fundamental particles की study करना।

LHC को चलाने के लिए -271°C temperature की ज़रूरत होती है, जो कि space से भी ठंडा है!

प्राचीन भारत में पारद से सोना बनाना, रहस्य या विज्ञान?

Ancient India में Alchemy (रसविद्या या रसायन शास्त्र) एक highly developed ज्ञान प्रणाली थी। इसे संस्कृत में “रसशास्त्र” कहा जाता है। इसका मकसद केवल औषधि बनाना नहीं, बल्कि पारद (Mercury) को शुद्ध कर उसे सोना (Gold) में बदलना भी था।

आयुर्वेद और सिद्ध परंपरा में यह माना जाता था कि शुद्ध पारद और कुछ विशेष जड़ी-बूटियों और धातुओं के साथ संयोग करके सोना बनाया जा सकता है। ये केवल मान्यता नहीं, बल्कि प्रयोगात्मक विज्ञान के रूप में देखा जाता था।

रसविद्या और सिद्ध योग: पारद से सोना बनाने की विधि

प्राचीन ग्रंथों जैसे कि:

रसार्णव, रस रत्नाकर, अन्नपाल निगुंड

इनमें पारद के संस्कार (purification) की 18 प्रक्रियाओं का ज़िक्र है, जैसे:

मरण (killing of mercury), बंधन (binding), घटना (reduction)

इसके बाद-

इन processes के बाद पारद को “रससिद्ध” माना जाता था- यानी ऐसा mercury जो नष्ट नहीं होता, उड़ता नहीं, और शरीर में अमरत्व या मूल्यवान धातु में परिवर्तित होने की शक्ति रखता है।

इन ग्रंथों में यह भी लिखा है कि यदि पारद को विशेष संयोजन में तांबे या लोहे के साथ heat किया जाए, तो वह सुनहरा रंग ले लेता है, और सोना बन जाता है या उसके समान दिखता है।

पारद से सोना बनाने की तकनीक प्राचीन भारत के रसशास्त्र की सबसे रहस्यमयी और आकर्षक विद्या थी।

सोना बनाने की खोज, प्राचीन भारत के ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का संगम

सोना बनाने की कल्पना, जो कभी केवल एक सपना या मिथक मानी जाती थी, आज विज्ञान और प्राचीन ज्ञान—दोनों की सीमाओं को चुनौती दे रही है। एक ओर आधुनिक विज्ञान ने CERN जैसे प्रयोगों के ज़रिए यह सिद्ध किया कि तत्वों को आपस में बदलना संभव है, भले ही वह बेहद सूक्ष्म और अस्थायी स्तर पर हो। दूसरी ओर, प्राचीन भारत की रसविद्या में भी पारद से सोना बनाने की विधियों का उल्लेख, न केवल सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि हमारे पूर्वजों की वैज्ञानिक सोच कितनी गहराई तक विकसित थी।

भले ही आज भी व्यावसायिक रूप से लैब में सोना बनाना असंभव हो, परंतु इन प्रयोगों से हमें न केवल पदार्थों की मूलभूत संरचना को समझने में मदद मिलती है, बल्कि यह भी एहसास होता है कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती—चाहे वह आधुनिक तकनीक से आए या सदियों पुरानी परंपराओं से।

शायद यही मानवता की सबसे बड़ी ताकत है—असंभव को संभव करने की निरंतर कोशिश।

ऐसे ही रोचक और ज्ञानवर्धक विषयों के लिए जुड़े रहिए latestinhindi.com के साथ।

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